Wednesday, November 23, 2016

भारतीय रेल व्यवस्था और हमारी जान

भारतीय रेल का लोगो 
[स्रोत : 
इंडियन रेल वेबसाइट]
रेल सेवा भारतीय यातायात की रीढ़ है । यह हमारे देश की सबसे बड़ी संगठित यातायात सेवा है । यह अपेक्षाकृत किफायती रही है, और अधिकांश दूरदराज के क्षेत्रों तक इसकी पहुँच भी है । यह इस देश के धनिकों की सवारी है तो अत्यंत साधारण जन की भी सवारी है । एक अनुमान के मुताबिक भारत में तकरीबन दो करोड़ लोग रोजाना ट्रेन में सफर कर रहे होते हैं [स्रोत : विकिट्रेवेल हमारे देश के लोग ट्रेन में सिर्फ सफर ही नहीं करते हैं, उतनी देर के लिए यह उनका ठौर-ठिकाना भी होता है । लोग अपरिचय के बावजूद एक-दूसरे से संवाद करते हैं । सुख- दुख बाँटते हैं । एक दूसरे का सहयोग करते हैं, और तकरार भी करते हैं । वे इसी ट्रेन के भीतर खाते हैं, सोते हैं, नित्य कर्म से निवृत होते हैं, किताबें पढ़ते हैं, गीत सुनते हैं, लैपटॉप पर कुछ काम निपटा रहे होते हैं, या कुछ और करते हुए निश्चिंतता के साथ गंतव्य की ओर बढ़ रहे होते हैं । इस निश्चिंतता के पीछे भारतीय रेल व्यवस्था पर उनका एक भरोसा होता है, जो उन्हें एक साथ मजबूरी में और विरासत में मिला है । हमें सही-सलामत और असुविधारहित गंतव्य तक पहुँचाना रेलवे की जिम्मेदारी होती है । इसके जिम्मेदार होने पर हम भरोसा करते हैं या हमें करना पड़ता है ।
भरोसा बुरी तरह छलनी होता है, जब रेल दुर्घटनाएँ होती हैं । रेल दुर्घटना में महज कोई ड्राइवर या कुछ सवारी नहीं मारे जाते हैं, बल्कि रेल के भीतर कुछ घंटो या कुछ दिनों के लिए बस गई एक खूबसूरत दुनिया खत्म हो जाती है । वैसे कहीं भी किसी एक भी प्राणी का दुर्घटनावश मारा जाना, बहुत दुखद, बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होता है । दुर्घटनाएँ प्राकृतिक हों, और उसपर सुरक्षा के खयाल से मनुष्य का कोई ठोस नियंत्रण न हो तो यह हमारी विवशता कही जाएगी लेकिन यदि दुर्घटनाएँ असावधानीवश हों, मानवीय भूल से हों, तो हम सबके लिए चिंता और चिंतन का विषय होना चाहिए । अक्सर रेल दुर्घटनाएँ असावधानी अथवा लापरवाही या भूल से ही होती हैं । मनुष्य से भूल होना अस्वाभाविक नही है, लेकिन एक सुसंगठित व्यवस्था में यदि इच्छाशक्ति हो तो ऐसी भूलों से बचा जा सकता है । ऐसी दुर्घटनाएँ टाली जा सकती हैं । लेकिन आखिर क्यों भारतीय रेलवे दुर्घटनाशून्य होने की दिशा में बढ़ नहीं पा रहा है, जबकि तकनीक लगातार अधिक उन्नत हो रही है, मानवीय कौशल के साथ ही मशीनी क्षमता में विस्तार हो रहा है?
निस्संदेह भारतीय रेलवे के कर्मचारी बहुत मेहनती रहे हैं । लेकिन क्या उनके ऊपर काम का आवश्यकता से बहुत अधिक बोझ नहीं होता है? क्या रेलवे के भ्रष्टाचारों से निपटने के लिए कभी कोई ठोस पहलकदमी हुई है? क्या रेल सामग्रियों के निर्माण से लेकर रखरखाव में सही गुणवत्ता मानकों और तय दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है? ऐसे कई प्रश्न हैं ।
दुर्घटनाएँ होती हैं, कुछ रस्मी कारवाइयाँ होती हैं, फिर सब कुछ सामान्य दिखने लगता है । रेल किराया लगातार बढ़ाया जा रहा है । यहाँ तक कि कुछ रेलों में हवाई जहाज की तर्ज पर फ्लैक्सी किराए की भी व्यवस्था कर दी गयी है । रेल सुविधाओं में बढ़ोतरी के ढेर सारे सपने दिखाए जा रहे हैं, लेकिन सच यह है कि भारतीय रेलवे बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराने में भी बहुत पीछे है । रेल यात्रा करते हुए, मैंने लगभग हरबार यह महसूस किया है कि पेय जल, शौचालय, साफ-सफाई, बिजली की व्यवस्था अक्सर कंडम हालत में होती है, रेलवे की विभिन्न श्रेणियों की बुनियादी सुविधाओं में भी बड़ा भेद-भाव तो होता ही है, असमाजिक तत्वों से सुरक्षा और आपातकालीन चिकित्सा के लिए भी मामूली इंतजाम तक नहीं होते हैं । इतना जरूर है कि रेलेवे का सर्वाधिक संगठित ठेकेदार आइआरसीटीसी खाद्य सामग्रियों और अन्य जरूरी सेवाओं की मनमानी कीमत वसूलने में संलग्न रहता है ।
ट्वीटर-प्रभु रेल मंत्री के द्वारा कुछ रेल यात्रियों की मदद के कुछ प्रचारित कारनामे क्या सिर्फ सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए है? क्या रेलवे ऊपरी आवरण के नीचे लगातार खोखला होता जा रहा है? क्या इसे जानबूझ कर एक ऐसी स्थिति की तरफ बढ़ाया रहा है, जहाँ इसे निजी हाथों में सौंप देने का प्रस्ताव तर्क संगत लगने लगे? क्या यह महज संयोग भर है कि अब रेल बजट स्वतंत्र नहीं होगा, बल्कि वित्त बजट का एक हिस्सा भर होगा?
मेरे खयाल से इंदौर-पटना एक्सप्रेस दुर्घटना के अथवा अबतक की ऐसी सभी दुर्घटनाओं के पीड़ितों के लिए शोकाकुल होने और उनके परिजनों के लिए सहानुभूति प्रकट करने के साथ ही, हमें अपने आपको और अपने परिजनों को भी ऐसी स्थितियों का मजबूती से सामना करने के लिए तैयार कर लेना चाहिए । यह एक विनम्र व्यवहारिक सुझाव है । आखिर रेल यात्रा से हम चाहकर भी बच नहीं सकते और हम इस सत्य को भी पीठ नहीं दिखा सकते कि हम जिस व्यवस्था मे जी रहे हैं, वहाँ हमारी जान कोई मायने नहीं रखती है । 
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