Thursday, October 27, 2016

अपेक्षाओं से बहुत पीछे / हैदराबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ 2014-15

मैंने 2014-15 हैदराबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव और परिणाम से सम्बंधित क्रमशः दो लेख ब्लॉग पर लगाये थे । अब 2016-17 छात्रसंघ चुनाव के परिणाम भी आ चुके हैं । यानी दो छात्रसंघों (2015-16 और 2016-2017) के चुनावों, उसके परिणामों पर और दो छात्रसंघों (2014-2015 और 2015-16) के कार्यों पर लिखा जाना शेष है । छात्र राजनीति से कुछ हद तक जुड़ाव रखने के कारण यह मुझे अपने दायित्व की तरह लगता है कि जब तक इस विश्वविद्यालय में हूँ, कम से कम इसके छात्रसंघ के चुनावों, परिणामों और उसकी उपलब्धियों या नकारेपन पर लिखने की कोशिश करूँ । इसी क्रम में लिखे गये विलम्बित लेखों की श्रृंखला का यह पहला लेख है ।

तस्वीर का स्रोत : southlive.in
अपेक्षाओं से बहुत पीछे
संदर्भ : हैदराबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ (2014-2015) का कार्यकाल

अपने पिछले लेख में, 2014-2015 छात्रसंघ चुनाव परिणामों को ऐतिहासिक कहने का कारण यह था कि आंबेडकर स्टूडेन्ट्स एसोसियेशन (ASA), बहुजन स्टूडेन्ट्स फ्रंट (BSF) और मुख्यतः कुछ अन्य आंबेडकरवादी छात्र संगठनों के गठबंधन ने लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर जीत हासिल की थी । जिन कारणों से चुनाव परिणामों को ऐतिहासिक कहा गया उन्हीं कारणों से इस छात्रसंघ से ऐतिहासिक महत्व के कार्यों की अपेक्षा भी थी । इस संदर्भ में इस छात्रसंघ ने बहुत निराश किया । जहाँ तक मेरी जानकारी है, इस छात्रसंघ ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिसे याद रखा जा सके । यहाँ तक कि दलित-पिछड़े छात्रों की बेहतरी के लिए कोई ठोस पहलकदमी भी इसके कार्यकाल में नहीं हुई । मेरी व्यक्तिगत अपेक्षा थी कि अपनी आंबेडकरवादी चेतना की वजह से यह छात्रसंघ यहाँ के सफाई कर्मचारियों के हित सुनिश्चित करने की दिशा में कुछ न कुछ जरूर करेगा । विश्वविद्यालय के सफाई कर्मचारियों (मेरा अनुमान है कि इनमें अधिकांश अनुसूचित जाति के हैं ।) की दशा अच्छी नहीं है । कान्ट्रैक्ट पर इन्हें कम तनख्वाह की नौकरी दी जाती है । साफ-सफाई के कार्यों के लिए इनके स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाले उपकरण और सामग्री का घोर अभाव होता है । निश्चित तौर पर अपनी आर्थिक दशा के कारण ही ये सुबह का नाश्ता और दोपहर का भोजन अनधिकृत रूप से छात्रावासों के मेस में करना चाहते हैं, जहाँ बचा खाने के लिए भी उन्हें मेस की निगरानी रखने वाले लोगों से अपमानजनक व्यवहार झेलना पड़ता है । मेरे खयाल से इन सफाई कर्मचारियों के उचित वेतन, भोजन, नौकरी में स्थायित्व, इनके स्वास्थ्य और सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली सामग्रियों की उपलब्धता जैसे मुद्दों को प्राथमिकता में रखते हुए छात्रसंघ को प्रभावी रुख अपनाना चाहिए था ।
इस छात्रसंघ को कार्यकाल की शुरूआत के कुछ ही अवधि के बाद कई विवादों औऱ अप्रत्याशित प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा । केन्द्रीय सत्ता के लिए मिले भारी जनादेश की बदौलत मई’2014 के अंतिम सप्ताह से नरेन्द्र मोदी की अगुआई वाली एनडीए की सरकार ने काम करना शुरू कर दिया था । विश्वविद्यालयों पर इस सरकार की सोच, नीतियों और इसके मूल एजेंडे का असर धीरे-धीरे पड़ने लगा था । नबंवर’2014 के लगभग अंत में अपेक्षाकृत लोकप्रिय वीसी रामकृष्ण रामस्वामी के अचानक से दिये गये इस्तीफे को सरकार के विश्विद्यालयों में अपनी पसंद का प्रशानिक ढांचा तैयार करने के लिए किये जा रहे भारी हस्तक्षेप के बतौर देखा जा सकता है । वीसी रामस्वामी के इस्तीफे और नये वीसी की नियुक्ति के बीच की अवधि में हैदराबाद विश्वविद्यालय में एकाधिक अंतरिम वीसी बने । विश्वविद्यालय पर प्रशानिक अस्थायित्व का नकारात्मक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक होता है ।
छात्रसंघ के इसी कार्यकाल के दौरान विश्वविद्यालय परिसर में 2 नवम्बर’2014 को छात्रों के एक समूह के द्वारा ‘किस ऑफ लव कैम्पेन’ और महाराष्ट्र में बीफ बैन के विरोध में आंबेडकर स्टूडेन्ट्स एसोसियेशन के नेतृत्व में 4 मार्च’2015 को ‘बीफ फेस्टिवल’ का आयोजन किया गया था । इन कार्यक्रमों पर एबीवीपी और इसी तरह की विचारधारा वाले संगठनों ने जम कर विवाद खड़ा किया था । पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन की भी इन मामलों में बेहद नकारात्मक भूमिका रही थी । 30 जुलाई’ 2015 को शाम में याकूब मेमन की फांसी के विरोध में कुछ समूहों द्वारा ‘नवाजे जनाजा’ का आयोजन भी बहुत विवादास्पद रहा । अगले सप्ताह ही (1 अगस्त 2015) को दिल्ली विश्विद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में मुजफ्फरनगर दंगों पर बनाई गयी नकुल साहनी की डाक्यूमेंट्री 'मुजफ्फरनगर बाकी है' के प्रदर्शन को एबीवीपी द्वारा बाधित किये जाने और उपस्थित लोगों के साथ अभद्रता किये जाने की घटना की खबर आयी । एएसए के हैदराबाद विश्विद्यालय इकाई ने 3 अगस्त 2015 को एबीवीपी की इस गुंडागर्दी की निंदा करते हुए एक विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया । एबीवीपी के हैदराबाद विश्विद्यालय इकाई के अध्यक्ष नंदनम सुशील कुमार ने इस विरोध प्रदर्शन का मजाक उड़ाते हुए अपने एक फेसबुक पोस्ट में जो लिखा उसका आशय यह है कि : यह हास्यास्पद है कि एएसए के गुंडे हुड़दंग पर बात कर रहे हैं । बाद में कथित तौर पर नंदनम सुशील कुमार ने एएसए के कुछ सदस्यों पर 4 अगस्त 2015 की देर रात उसके साथ मारपीट करने का आरोप लगाया । फेसबुक पर एएसए के सदस्यों लिए गुंडे (Goons) शब्द के प्रयोग को इसका कारण बताया गया । एएसए ने मारपीट की किसी भी घटना से इंकार किया और आम धारणा भी यही है कि ये आरोप बहुत हद तक राजनीति से प्रेरित थे । लेकिन एक अवांछित राजनीतिक फेसबुक पोस्ट पर एएसए द्वारा फेसबुक से बाहर जाहिर की गयी तीव्र प्रतिक्रिया को भी सकारात्मक नहीं कहा जा सकता है । इस मसले पर आया एएसए का पोस्टर स्वयं भी उसकी राजनीतिक अपरिपक्वता, असंयम और दंभ को प्रदर्शित करता है । इस कथित घटना या आरोप का परिणाम एएसए के पाँच छात्रों के निष्कासन के बतौर हुआ । इस छात्रसंघ के कार्यकाल के अंतिम महीनों में हुई यह घटना लगातार हो रहे राजनीतिक हस्तक्षेप, न्याय-असंगत प्रशासनिक रवैये और समानांतर प्रतिरोध के साथ लम्बे समय तक ज्वलंत बनी रही । यह कथित घटना और बाद के घटनाक्रम निष्कासित छात्रों में से एक रोहित वेमूला की कथित आत्महत्या की बेहद दुखद घटना से भी जुड़ते हैं । इस अत्यंत दुखद प्रसंग पर अलग से लिखने की कोशिश करूँगा ।
यूजीसी ने अप्रैल2015 में  उच्च शिक्षा संस्थानों के छात्रों की तथाकथित सुरक्षा के लिए कुछ दिशानिर्देश जारी किये थे । इसके कई निर्देश सुरक्षा के नाम पर छात्रों की स्वतंत्रता, निजता और उनके प्रतिरोधी स्वभाव पर अंकुश लगाने वाले थे । इस दिशानिर्देश में सुरक्षा के बहाने कैंपसों में पुलिस की दखल और निगरानी बढ़ाने का इरादा भी निहित था । विभिन्न विश्वविद्यालयों में छात्रों और शिक्षकों के समुदाय ने इसका विरोध किया था । हैदराबाद विश्विद्यालय के इस छात्रसंघ ने भी इन दिशानिर्देशों का विरोध किया था । खास तौर पर कैंपस में पुलिसिंग को लेकर अपने कार्यकाल के अंत तक यह छात्रसंघ जूझता रहा । शिक्षकों का भी एक तबका इन दिशानिर्देशों का विरोध कर रहा था । मेरे खयाल से व्यवहारिक तौर पर इसमें आंशिक सफलता भी मिली लेकिन यह आंदोलन जितना प्रभावी और व्यापक हो सकता था, उसकी तुलना में इसका प्रभाव और इसकी व्यापकता न्यूनतम रही । इसका बड़ा कारण एएसए में जुझारू राजनीति के सही प्रशिक्षण का अभाव और बहुत हद तक इच्छाशक्ति की कमी को भी माना जा सकता है ।
कुल मिलाकर यह छात्रसंघ विश्विद्यालय के छात्र और कर्मचारी समुदाय के हितों के लिए उल्लेखनीय कार्य करने में पूरी तरह विफल रहा । चाहे-अनचाहे विवादों ने भी इस छात्रसंघ की कार्यक्षमता को बहुत नुकसान पहुँचाया और उलझाए रखा । यदि एएसए और बीएसएफ जैसे संगठन इस कार्यकाल के दौरान की गलतियों, कमजोरियों और विफलताओं पर ईमानदारी से विचार करें तो उन्हें बेहतर कर पाने में मदद जरूर मिलेगी ।



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