Tuesday, March 5, 2013

शशि की स्मृति में

शशि शेखर
बीते वर्ष की कई अच्छी-बुरी यादें हैं। बुरी यादों में से एक है हिन्दू कॉलेज के हिन्दी विभाग के होनहार छात्र शशि शेखर का जाना। 16 नवम्बर 2012, पंखे से झूलती उसकी देह की कल्पना से भी सिहर जाता हूँ। 


शशि ने यह तस्वीर स्कूल के दिनों में बनायी थी।



मेरी स्मृति ठीक है तो पहली बार 2010 के जुलाई-अगस्त महीने में मैंने उसे यू-स्पेशल बुक शॉप में देखा था । सेतु ने बताया था कि यही शशि शेखर है। इसी के बी.ए. फस्ट इयर में 80 % के लगभग अंक आए हैं। हिन्दी में इतने अंक लाना बहुत बड़ी बात है। वह टहलते हुए रैक पर किताबें देख रहा था। मैं उसके पास गयामैं ने पूछा- कैसे और क्या लिखते हो कि इतने अंक आ जाते हैं उसने थोड़ा मुस्कुराते हुए बहुत धीमे से कुछ कहा था। उसने क्या कहा तब भी मैं समझ नहीं सका था या अब मुझे याद नहीं है। उसके चेहरे के एक्सप्रेशन से जरूर महसूस हुआ था कि ऐसे सवाल सुन-सुन कर वह ऊब चुका है।

एम.ए.(हिन्दी) की हमारी क्लासेज फैकल्टि ऑफ आर्ट्स में हुआ करती थी। एनरॉलमेन्ट हिन्दू कॉलेज में था। हिन्दू कॉलेज के छात्रो से खास कर अंडर ग्रेजुएट छात्रो से परिचय न के बराबर था। शहीद भगत सिंह कॉलेज का मेरा मित्र सेतु उसी साल (2010 में) माइग्रेशन कराकर बी.ए.(हिन्दी ऑनर्स) थर्ड इयर में हिन्दू कॉलेज आ गया था। मेरे विपरीत उसमें घुलने-मिलने की भारी क्षमता है। वह और शशि भी काफी घुल-मिल गए थे। सेतु बताया करता था कि शशि शेखर जिनियस है। किसी में परफैक्शन नहीं हो तो उसे 80% अंक नहीं आ सकते हैं, यह मैं अपने अनुभव से जानता हूँ। मैं ने उसकी लिखी कविताएँ और लेख हिन्दू कॉलेज के हिन्दी विभाग की दीवार पत्रिका पर देखी थी। उसकी लिखावट बहुत सुंदर थी। उसका व्यक्तित्व सौम्य था। उसके प्रति स्नेह और सम्मान दोनों आता था।
26 फरवरी 2011 को हिन्दू कॉलेज के हिन्दी विभाग ने एक दिन के लोकल ट्रिप का कार्यक्रम रखा था। एम.ए. के छात्र भी जा सकते थे। मैं गया था। लोदी गार्डेन, मुगल गार्डेन और हिरण पार्क मे हम लोग घूमने गए थे। वे लोग जो परिवार के साथ रहते हैं अपने घरों से ज्यादा भोजन लेकर आए थे। ज्यादा इसलिए कि उसमें हम जैसे लड़के-लड़कियों का हिस्सा भी था जिनके लिए भोजन बना कर ला पाना कठिन था। लोदी गार्डेन में हम लोग खाने बैठे थे। मेरे बगल में सेतु और उसके बगल में शशि बैठा था। वह अल्प भोजी नहीं था। वह जितनी धीमी गति से बोला करता था, उतनी ही धीमी गति से खाता भी था। सबके खाकर उठ जाने के कुछ देर बाद ही वह उठा था। सेतु ने उससे मजाक में कुछ कहा भी था ।

उसके साथ सबसे अधिक समय तब बीता था जब हम कथाकार उदय प्रकाश के यहाँ गए थे। हिन्दू कॉलेज वाली ट्रिप से ठीक एक दिन पहले यानी 25 फरवरी 2011 को। हिन्दू कॉलेज की वार्षिक पत्रिका- इन्द्रप्रस्थके लिए उन से साक्षात्कार लेने कॉलेज से एक टीम गयी थी। शशि के अलावा अनुपमा, अदिति, असीम, संजीव और सेतु के साथ मैं भी था। वह उस दिन उत्साह में  था। लेकिन उदय प्रकाश के साथ दो-तीन घंटे तक चले साक्षात्कार में वह एक भी सवाल नहीं पूछ सका था। लौटते हुए इसका उसे मलाल था। संभवतः हम लोगों द्वारा लगातार पूछे जा रहे सवालों के बीच अपने विनम्र और संकोची स्वभाव के कारण वह सवाल नहीं पूछ पा रहा था। बाहर आकर उसने प्रतिक्रिया दी। असीम तो आलोचना पर ही उन्हें घेरे हुए था। आप तो रेपिड फायर राउंड लेकर बैठ गए- सेतु से कहा। मेरे लिए कहा- भैया भाषा के सवाल पर ही अटके रहे। उसकी प्रतिक्रिया बता रही थी कि हम सब ने अच्छा साक्षात्कार नहीं लिया है। मैं ने उससे कहा था कि कुछ तुम्हारे सवाल थे तो तुम्हें पूछना चाहिए था न, तुम चुप क्यों रहे ? शायद उसने कहा था कि आप लोगों ने मौका ही कब दिया या उसने कोई जवाब नहीं दिया था।
उदय प्रकाश का यह दो-तीन घंटे का साक्षात्कार हमने रिकॉर्ड किया था। इसे लिपिबद्ध करना आसान नहीं था। इसके कई अंशों को एडिट भी करना था। इस काम में शशि को किसी से खास मदद नहीं मिल सकी थी। इस तरह मेहनत का यह काम उसने अपने ही बूते किया था। 'इन्द्रप्रस्थ' में वह साक्षात्कार छप कर आया। उसने बहुत सारे अंश अपने विवेक से हँटा दिए थे। उदय प्रकाश के उत्तर में से मुख्य अंश को छाँटकर उसने उसकी भाषा को भी दुरूस्त कर दिया था। इसे पढ़ते हुए मुझे लगा था कि यह लड़का संभावनाओं से भरा हुआ है। यह भविष्य मे बहुत बेहतर करेगा।

शशि से मेरी कभी लम्बी अनौपचारिक बातचीत नहीं हुई थी। बाद में जब वह मिलता तो हालचाल या मुस्कुराहट भर से हमारा काम चल जाता था। वह कम से कम बोला करता था। अपने निकट के लोगों से सम्भव है वह खुल कर बोलता हो। वामपंथी छात्र संगठन आइसा से जुड़े सन्नी ने मुझे बताया था कि शशि फस्ट इयर में इस छात्र संगठन में बेहद सक्रिय रहा था। वह ट्यूशन पढ़ाया करता था। लौटते हुए उनसे अक्सर समसामयिक विषयों पर बहस किया करता था। लेकिन सेकेन्ड इयर में उसकी सक्रियता धीरे-धीरे कम होती गयी। सन्नी का मानना है कि वह कैरियर का दबाव महसूस करने लगा था। सेकेंड इयर का परीक्षा परिणाम उसकी आशा के अनुरूप नहीं था। ऐसे में सांगठनिक सम्पर्क से उसने खुद को पूरी तरह से काट लिया था। बहुत संभव है कि इसके कारण वैचारिक द्वंद्व से उपजे हुए हों।

इस दुखद घटना से कुछ महीने पहले मैंने शशि शेखर के फेसबुक वाल पर यूजीसी के एक स्कालरशिप योजना का लिंक शेयर किया था। यह स्कॉलरशिप विश्वविद्यालय में पढ़ रहे एम.ए. के उन विद्यार्थियों के लिए था जो बी.ए. में विश्वविद्यालय का रेंक होल्डर रहा हो। लिंक के साथ मैंने लिखा था- तुम्हारे लिए। उसने प्रतिक्रिया दी थी- SO SWEET OF YOU BHAIYA!!
संभवतः उससे अंतिम भेंट फैकल्टि ऑफ आर्ट्स में हुई थी। वह चलते हुए मिल गया था। मैंने उससे स्कॉलरशिप फॉर्म भरा या नहीं यह पूछा था। वह मेरी बात ठीक से समझ नहीं सका था। जब उसने समझा तो धीरे से कहा- हाँ, भर दिया।

शशि का इस तरह चला जाना बहुत टीस देता है। न्यूज चैनलों और अखबारों में पुलिस के हवाले से उसके नोटबुक में लिखे जिन पंक्तियों को उसके सुसाइड नोट के रूप में दिखाया गया वह था : It’s my story: Can we do nothing for the dead? And for a long time the answer has been nothing’ *
[यह मेरी कहानी है : क्या हम मृतकों के लिए कुछ नहीं कर सकते हैं ? और लम्बे समय से इसका उत्तर है- कुछ भी नहीं।]
दरअसल यह निर्मल वर्मा की कहानी परिंदेका एक अंश है, इसके वाक्यांश It’s my story को छोड़कर।  कहानी की शुरुआत कैथरीन मेन्सफील्ड के इसी वाक्य को कोट करते हुए की गयी है। यह कहानी शशि की कक्षा के पाठ्यक्रम का हिस्सा थी। ऐसे में इसे सुसाइड नोट कहना कितना उचित है ? हालाँकि It’s my story का लिखा होना, जैसा कि अखबारों में बताया गया है, खटकता है। लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि यह नोटबुक जिस छात्र का था, वह बहुत क्रियेटिव था। कुछ अनाम प्राध्यापकों के हवाले से यह भी छापा गया था कि वह मृत्यु के बाद के जीवन पर लगातार शोधरत था। उसने एक-दो दिन पहले कुछ प्राध्यापकों से इस विषय पर लम्बी चर्चा भी की थी। ये खबरें भी अपुष्ट हैं। और इसे नोटबुक में लिखी पंक्तियों के आगे की मनगढ़ंत कड़ी के रूप में भी देखा जा सकता है।


13 मार्च 2012 को हस्ताक्षर पत्रिका के लिए साक्षात्कार के क्रम में कुंवर नारायण के साथ।
शशि शेखर मेधावी था। उससे इर्ष्या की जा सकती थी। उस पर गर्व किया जा सकता था। वह कविताएँ लिखा करता था। मैंने सुना है वह नियमित डायरी लिखा करता था। उसे पत्र लिखने में भी रूचि थी। मैं दृढ़ विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इतनी कम उम्र में भी उसके विचार जहाँ दर्ज होंगे महत्व के होंगे। शशि की जिनसे भी अनौपचारिक बातचीत होती थी वे उसकी वैचारिकी को अपनी स्मृति के सहारे कलमबद्ध कर सकें तो बड़ी बात होगी। उसकी डायरी और पत्र प्रकाश में लाये जा सके तो उसकी प्रतिभा से लोग परिचित हो सकेंगे। उसके असाइनमेंट्स भी महत्व के होंगे।** कुछ ऐसे संस्मरण जो उसकी मनोदशा की पड़ताल करे, लिखे जा सके तो एक बड़ा भ्रम खत्म होगा। यह सब काम शशि के करीब रहे लोगों को करना चाहिए। उससे तो बहुत सारी शिकायतें हैं। जो कम बोला करते हैं उन्हें ऐसे चुपचाप नहीं चल देना चाहिए। उसके साथ एक बड़ी सम्भावना का अंत हो गया। उसकी वैचारिकी और सृजन को सहेजा जा सका तो उसके लिए बड़ी श्रद्धांजलि होगी।


* शशि शेखर से जुड़ी खबरें :
2. नवभारत टाइम्स

** हिन्दू कॉलेज की वे पत्रिकाएँ जिन से शशि का गहरा जुड़ाव रहा है उन पत्रिकाओं को शशि की रचनात्मकता को सामने लाने का कार्य जरूर करना चाहिए।

शशि शेखर की  कुछ प्रकशित रचनाओं के लिंक :
1. शब्दों में छिपी रोशनी : नरेश सक्सेना के कविता संग्रह 'सुनो चारुशीला' की समीक्षा / जनसत्ता,14 अक्टुबर 2012
2. बतकही के बहाने : स्वयं प्रकाश के साक्षात्कारों के संकलन 'और फिर बयाँ अपना' की समीक्षा / जनसत्ता, 15 जनवरी 2012
[सारी तस्वीरें शशि शेखर (Shashi Shekharके फेसबुक प्रोफाइल से से ली गयी हैं।]

8 comments:

  1. पढ़ते पढ़ते आँखें अनायास ही गीली हो गयी।सच कहा सौरभ यूँ चुपचाप बिना कुछ कहे चले जाना कतई सही नहीं है .सृजन और संभावनाओं से भरा एक पंछी बिना अपनी उड़ान भरे कहीं गम हो गया .शशि का जाना खल रहा है।बेहद दुखद .

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  2. Isiliye chala gaya ki waqt thoda koi na nikal saka.khud se nahi samhalti thi shakhsiyat ooski,oosne bahut khoja hoga par hath ooska koi na samhal saka!

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  3. mainee akhbaar me iss ghatna ke baare me padha tha ..aaj yahan iss vyaktitva ke baare me jo kuch bhi thoda sa jana aisa laga ye ek adbhut pathik tha joo apni yatra me mast tha aur gatimaan tha chala gaya yatra shayd itini hee thi

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  4. Really such a tragic end to such fellow,I am really hurt.Vyakti kyo apne andherey mey kho jata hai ki apney hi liye itna nirmam ho pata hai.We are at a very remote place at Rewa so cant hear direcly from the capital but being associated with knowledge field if such case comes to anybodys notice ,pl refer to me personally,we will try our best to console,relax,divert such fellow from sucidal attitude.
    My contact no is 9425898136

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  5. those were the days my friend
    i thought they would never end-jimi hendrixs kee inhi panktiyon ke sath nam aankhon se aise pratibhashaali yuva ko salute karta hoon kash ki wo hota ......ARUNABH

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  6. जब तक उसने जीवन जिया उसके लिये फक्र है मुझे...और उसकी मौत से स्तब्ध हूं मैं..!!असीमित संभावनाओ को मौत ने सीमित कर दिया..

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  7. आज फिर मन भारी हो गया ...

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