Thursday, June 16, 2016

सुनो सितारे*

वे सितारे हैं । प्रदूषण की वजह से आकाश के तारे रोज-ब-रोज हमारी नज़रों के लिए अधिक धुँधले अधिक बेनूर होते जा रहे हैं , तब दिन-ब-दिन कोई थोड़ा और चमक उठता है, तो वे हमारे ‘सितारे’ ही हैं । उन्हें धरती से उठा कर हमने ही आसमान बख्शा है । हम उन्हें हसरत भरी निगाहों से निहारते हैं । हमने उन्हें अपनी पहुँच से बाहर निकल जाने की हैसियत दी है ,और वे हमारी पहुँच से और-और बाहर निकल जाने के लिए कटिबद्ध हैं । 
          कभी सात ऋषियों को सितारों की प्रतिष्ठा मिली थी । हमारे समय के सितारे फिल्म और क्रिकेट जैसी दुनियायों से बावस्ता हैं । इनकी करोड़ो की कमाई के कसीदे पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं । सनद रहे कि यह पैसा आपकी-हमारी जेबों से ही जाता है । मैं मानता हूँ और ज़ोर देकर मानता हूँ कि भारत एक बदहाल देश है । यहाँ की अधिकांश आबादी बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित है । यह गणित मुझे चक्कर में डाल देता है कि हमारे बीच से उन सब की कमाई के करोड़ों का इंतजाम कैसे हो जाता है !
          हमारे पास संसाधनों का अभाव नहीं है । पैसों की कमी नहीं है । यह बात और है कि यह कुछ लोगों तक सिमटे हुए हैं । हमारे पास जितना जो है भी वह भी हमारी जेबों से निकलकर कुछ लोगों की तिजोरियों को ही भरे जा रहा है । इन्हीं कुछ लोगों के मोहरे हैं, ये सितारे । एक सहजीवी रिश्ता है इनमें । ये उनके उत्पादों को बिकवाते हैं ।  उनके निवेश पर मुनाफे के द्वार खोलते हैं । सिनेमा घरों की कुर्सियों पर, क्रिकेट स्टेडियमों की दर्शक दीर्घा मे, मंहगे उत्पादों आदि के बदौलत बड़ी सफाई से ये हमारी जेबें साफ कर लिया करते हैं । क्रिकेटर खुद को सरे आम करोड़ों में निलाम करते हैं । फिल्में रिलीज होने से पहले अरबों में बिक जाती है !  
          मुझे इन करोड़ों कमाने वालों से इर्ष्या नहीं होती है । घृणा होती है । जिस देश में पूरे महीने मेहनत करने वाले को पाँच-सात हजार की तनख्वाह भी मुश्किल से मिलती है, यहाँ तक कि फिल्मों के सेटों पर और क्रिकेट के मैदानों पर मेहनत करने वाले कर्मचारियो, मजदूरों, फिल्म में सहायक भूमिकाएँ करने वाले कलाकारों और ग्रामीण, कस्बाई और राज्य स्तर तक की क्रिकेट व अन्य खेल  प्रतिभाओं को उचित मेहनताना या प्रोत्साहन राशि तक नहीं मिलती- इनके लिए करोड़ों कहाँ से आते हैं? किस नैतिक आधार से ये इतनी रकम लेते हैं, और इसे कैसे पचा पाते हैं ?
मेरे देश के चिकने चुपड़े चेहरे व बेहतरीन देहयष्टि वाले फिल्मी नायकों, तुम सब देश की जनता को लूटने लुटवाने वाले एजेंट हो । तुम हमारे लिए नहीं हमें बर्बाद कर देने की हद तक जा सकने वालों के लिए नाचते हो, डायलॉग बोलते हो, भाव भंगिमाएँ बनाते हो । पैसे वालों के हाथों में नीलाम हो चुके क्रिकेटरों तुम सब देश के लिए नहीं बेहिसाब पैसों और सिर्फ बेहिसाब पैसों के लिए खेलते हो । पूँजीपतियों के लिए खेलते हो । दलालों के लिए खेलते हो । सट्टेबाजों के लिए खेलते हो । इस देश की आवाम को लूटने वालों के लिए खेलते हो ।

सुनो, एक दिन तुम सबके आलीशान बंगले, लक्जरी गाड़ियाँ और ऐसी ही कई चीजें कौड़ियों के भाव नीलाम होंगे जो तुमने इस देश की जनता की गाढ़ी कमाई पर डाका डाल कर बनाए हैं ।


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[* 26.03.2013 को लिखी गयी डायरी (थोड़े बहुत संशोधन और परिवर्धन के साथ)]


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