साभार : बीबीसी न्यूज |
इस साल नवम्वर महीने में
इजराइल की सेना ने आत्मरक्षा के नाम पर गाजा पर लगातार हमले किये। एक बड़ी सैन्य
ताक़त द्वारा मासूमों का बेदर्दी से कत्ल किया गया। इजराइल की संसद अक्टूवर महीने
में भंग कर दी गयी थी। इसी महीने यह भी तय हो गया था कि जनवरी 2013 में वहाँ आम
चुनाव कराए जाएंगे। पिछले कुछ वर्षों में इजराइल की आंतरिक स्थिति बहुत संतोषप्रद
नहीं रही है। रोजगार, गरीबी व अन्य आंतरिक चुनैतियों से निपट पाने में अपनी असफलता से ध्यान हटाने
के लिए लिकुड पार्टी की सरकार के लिए आत्मरक्षा के मुद्दे को हवा देना जरूरी हो
गया था। * ईरान से ख़तरे की बात भी वहाँ ज़ोर-शोर से उठाई जा रही है। यह लगभग साफ
हो चुका है कि नवम्वर में फिलिस्तीन पर हुए हमले की मूल वजह प्रधानमंत्री बेंजामिन
नेतन्याहू की चुनावी महत्वाकांक्षा है। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में इंसाफ और
शांति पसंद लोगों द्वारा इजराइल के इस कृत्य की निंदा की गई। लेकिन अमेरिका लगातार
यह संदेश देता रहा कि वह इजराइल के अत्मरक्षा के अधिकार का सम्मान करता है। यह
समान मानसिकता वाली शक्तियों की दोस्ती का बयान है। अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव
भी इसी इसी तरह के कुछ मुद्दे उछाल कर जीते जाते रहे हैं। इस बार ओबामा की बड़ी
सफलता एटावाद में पाकिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन कर ओसामा को मारना रहा। यह
कहना अनुचित नहीं होगा कि ओसामा को इसी उद्देश्य से अनुकूल समय में शिकार बनाया
गया।
यह अनायास नहीं है कि
गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सर क्रीक (SIR
CREEK) का मुद्दा उठाया है। सर
क्रीक गुजरात के कच्छ से सटा खाड़ी क्षेत्र है। यह सामरिक दृष्टी से महत्वपूर्ण
है। पाकिस्तान के सिंध प्रांत और गुजरात की सीमा रेखा पर फैले इसके करीब 650 वर्ग
किलोमीटर क्षेत्र पर दोनो ही देश अपना दावा करते हैं। ** इसलिए यहाँ दोनो देशो के
बीच तनाव बना रहता है। लेकिन इस क्षेत्र का विवाद सियाचिन विवाद की शोर में दवा
रहता है। नरेन्द्र मोदी ने यह संदेह व्यक्त किया है कि प्राकृतिक गैस व तेल के
कुओं से समृद्ध सर क्रीक खाड़ी क्षेत्र को भारत सरकार एक गुप्त समझौते के तहत
पाकिस्तान को सौंपने की तैयारी कर रही है। इस मुद्दे पर नरेन्द्र मोदी ने एक पत्र
प्रधानमंत्री के नाम लिखा है। मोदी ने यह
पूछा है कि – अप्रैल
में अजमेर यात्रा पर आए पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के साथ जब आप
दिल्ली में भोजन कर रहे थे तब क्या जरदारी ने सर क्रीक का मुद्दा नहीं उठाया था ? आपने तेहरान में पूरी दूनिया के सामने पाकिस्तान से किसी
ठोस समझौते की ओर बढ़ने की बात नहीं कही थी ? मोदी
ने पोरबंदर में केद्रीय रक्षामंत्री के उस बयान को भी उद्धृत किया है जिसमें
उन्होंने सर क्रीक मुद्दे पर आगे के रास्ते खुलने की बात कही थी। मोदी ने इस
संदर्भ में पीएमओ से स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा है। पत्र में उनहोंने ख़ुद को
देश का एक आम नागरिक कहा है जो देश की सुरक्षा और संप्रभुता को लेकर चिंतित है।
*** यह सच है कि आपसी विवादों पर होने
वाली बातचीत को लेकर सरकारों का अपने देश की जनता के साथ पारदर्शिता का घोर अभाव
रहा है। लेकिन आपसी बातचीत में विवादास्पद मुद्दों को शामिल किया जाना संदेह की
वजह नहीं हो सकता है। सर क्रीक का मुद्दा दोनों देशों के बीच पहले भी उठता रहा है।
**** अब तक का इतिहास यही रहा है कि सीमा विवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे पर दोनों
देशो के हुक्मरान यथास्थिति बनाए रखने के पक्षधर रहे हैं। एक इंच जमीन को लेकर भी
उनका समझौतावादी रुख अपने देश में उनकी राजनीतिक साख को हमेशा के लिए ख़त्म कर
सकता है,
यह उन्हें बेहतर पता है। ऐसे में पीएमओ और कांग्रेस के नेता
नरेन्द्र मोदी के संदेह को मनगढ़ंत, निराधार और भड़काऊ बता रहे हैं तो यह ग़लत नहीं लगता है ।
चुनाव के दौरान देश की संप्रभुता और अखंडता का मुद्दा उठाकर नरेन्द्र मोदी जहाँ एक
ओर कांग्रेस द्वारा देशहित को सुरक्षित रख पाने की क्षमता पर प्रश्न चिह्न लगा रहे
हैं,
वहीं ख़ुद को एक दूरदर्शी और सामर्थ्यवाण नेता के रूप में
प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे हैं। निश्चित रूप से वे विकास के अपने दावे के
खोखलेपन से परिचित हैं और उन्हें पता है कि हर बार की तरह जुनूनी वोट ही उन्हें
कुर्सी तक पहुँचाएँगे। देश की सीमा विवाद पर संदेदनशील बयान देकर पूरे देश का
ध्यान एक बेहतर नेतृत्व के तौर पर अपनी ओर खींचना भी उनका ध्येय हो सकता है। सभी
जानते हैं कि उनकी निगाहें साउथ ब्लॉक पर टिकी हैं।
21 नवम्वर को मुंम्बई
हमले के दोषी आमिर अजमल कसाब को पुणे के यरवदा जेल में बेहद गुप्त तरीके से फाँसी
दे दी गई। ***** इसका समय भी गुजरात चुनाव से ठीक पहले चुना जाना कुछ निहितार्थ
रखता है। जिस तरह कांग्रेसी नेता और कई केन्द्रीय मंत्री इसे अपनी बड़ी सफलता के
तौर पर दिखा रहे हैं, वह भी संदेह पैदा करता है। देश भर में कसाब की फाँसी के बाद यूपीए सरकार ने जो
जश्न की प्रस्तावना रखी है वह मुम्बई हमले के पीड़ितों को न्याय मिल जाने का भ्रम
पैदा करता है। कई लोगों ने ऐसा मान भी लिया है। दरअसल कट्टर राष्ट्रवाद और
हिंदूवाद की राजनीति करने वाले नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी के भारी प्रभाव वाले
गुजरात में उनसे मुकाबला करने के लिए उन्हीं की भाषा में ज़वाब देना कांग्रेस को
ज़रूरी लगने लगा है। कांगेस के हिस्से मंहगाई और भ्रष्टाचार की जिम्मेदारी के आरोप
के अलावा कुछ भी नहीं है। ऐसे में कांग्रेस ने कसाब की फाँसी को अपने ढाल के रूप
में इस्तेमाल किया है। कांग्रेस पर लगने वाले मुस्लीम तुष्टिकरण के आरोप के
मुकाबले इसे गुजरात चुनाव में कांग्रेसी नेताओं ने ख़ूब भुनाया भी है।
राष्ट्र की सुरक्षा और
प्रतिष्ठा से जुड़े भावनात्मक मुद्दे सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक फ़ायदे के लिए
इस्तेमाल किए जा रहे हैं। ये ऐसे संवेदनशील मुद्दे हैं जिन्हें भड़काकर जनता को
आसानी से मुर्ख बनाया जा सकता है। सिर्फ धर्म ही नहीं किसी भी भावना को कट्टरता से
से जोड़ दिया जाए तो वह अफीम का काम करती है। इस समय पूरी दुनिया में राष्ट्र की
एकता,
अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के प्रति जनता के भावनात्मक जुड़ाव को
कट्टर बनाने में उस राष्ट्र का पूरा तंत्र और दक्षिणपंथी ताक़तें जी जान से जुटी
हुई हैं। इस अफीम का अपने हक़ में इस्तमाल करना, राजनीतिक पार्टिर्यों को ज्यादा प्रभावी और सुरक्षित लग रहा
है। ऐसे में विश्व भर में पसरी ग़ैरईमानदार राजनीतिक ताक़तें कभी अमन चाहेंगी और
विवादास्पद अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को सुलझाने
की मंशा रखेगी, यह उम्मीद रखना मूर्खता है। घरों में आग लगाकर हाथ सेकने की जो परंपरा विश्व भर
में निर्विघ्न चल रही हैं, जनता की समझदारी ही इससे निपट सकती है। हमें यह समझ लेना चाहिए कि सर क्रीक
जैसे मुद्दे अनायास नहीं उठाए जाते हैं।
साभार संदर्भ :
2. Wac-Maan / Article
**विकिपीडिया / सर क्रीक खाड़ी विवाद
*** हिन्दुस्तान टाइम्स (16 दिसम्बर 2012)
****न्यूज रिपोर्टर डाट इन