25 सितम्बर 2014 को हुए हैदराबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव के परिणाम 26 सितम्बर 2014 देर शाम तक घोषित कर दिये गये थे । इस ब्लॉग का पिछला पोस्ट छात्रसंघ चुनाव पर केन्द्रित था । ऐसे में यह ज़रूरी लग रहा था कि चुनाव परिणाम पर कम से कम एक सूचनापरक पोस्ट प्रकाशित किया जाए । खेद है कि यह पोस्ट बहुत देर से संभव हो सका है । संभव है कि आगामी कुछ और पोस्ट इसी खेद के साथ प्रस्तुत किये जाएँ !
परिणाम घोषित हुए करीब ढाई महीने बीत चुके हैं। नव निर्वाचित छात्रसंघ के कार्यों के मूल्यांकन के लिए यह समय हालाँकि पर्याप्त नहीं है, लेकिन छात्रों ने जिस तरह से परिवर्तन में विश्वास जताया है, कुछ अतिरिक्त उम्मीदें बांधी जा सकती हैं। पिछले कई सालों से छात्रसंघ के महत्वपूर्ण पदों पर रहे एसएफआई से विद्यार्थियों की नाराजगी कितनी गहरी थी, यह चुनाव परिणाम से पता चलता है । एसएफआई (SFI) को इस बार महज उपाध्यक्ष के पद से संतोष करना पड़ा । युनाइटेड डेमोक्रेटिक एलायंस (UDA) ने अध्यक्ष, महासचिव और कल्चरल सेकरेट्री का पद हाँसिल किया । संयुक्त सचिव और खेल सचिव ( Sports Secretary) के पद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के खाते में गये ।
परिणाम घोषित हुए करीब ढाई महीने बीत चुके हैं। नव निर्वाचित छात्रसंघ के कार्यों के मूल्यांकन के लिए यह समय हालाँकि पर्याप्त नहीं है, लेकिन छात्रों ने जिस तरह से परिवर्तन में विश्वास जताया है, कुछ अतिरिक्त उम्मीदें बांधी जा सकती हैं। पिछले कई सालों से छात्रसंघ के महत्वपूर्ण पदों पर रहे एसएफआई से विद्यार्थियों की नाराजगी कितनी गहरी थी, यह चुनाव परिणाम से पता चलता है । एसएफआई (SFI) को इस बार महज उपाध्यक्ष के पद से संतोष करना पड़ा । युनाइटेड डेमोक्रेटिक एलायंस (UDA) ने अध्यक्ष, महासचिव और कल्चरल सेकरेट्री का पद हाँसिल किया । संयुक्त सचिव और खेल सचिव ( Sports Secretary) के पद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के खाते में गये ।
यह चुनाव परिणाम एसएफआई के लिए आत्मसमीक्षा का विषय होना चाहिए । पिछले लेख में कैंपस में विभिन्न राजनीतिक संगठनों की भूमिका के सम्बंध में अल्पावधि में बनी अपनी समझ के आधार पर मैंने थोड़ा बहुत लिखने की कोशिश की थी । निश्चित रूप से कैंपस में संगठनों को अपने प्रति बनने वाली नकारात्मक धारणाओं के निषेध के लिए अथक राजनीतिक प्रयत्न करना होगा । अनिवार्यतः प्रयत्न सिर्फ सैद्धांतिक ही नहीं व्यावहारिक स्तर पर भी होना चाहिए । एबीवीपी जैसे संगठन की लगातार मुखर उपस्थिति उन्माद विरोधी राजनीति करने वाले विद्यार्थी संगठनों के लिए आने वाले वर्षों में एक बड़ी चुनौती बन सकती है । इस संगठन ने इस बार एसएफआई से करीब 2% अधिक मत हासिल कर उसे जनाधार में पीछे छोड़ दिया है । विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के अांतरिक मासिक पत्र यूओएच डिस्पैच (UOH DISPATCH) में दिये गये आंकड़े के अनुसार एबीवीपी को 30% वोट मिले हैं । यह आंकड़ा यूडीए को मिले मतों से महज 1% ही कम है । तेलंगाना के सत्तारूढ़ दल तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) से सम्बद्ध टीएसआरवी (TSRV) ने 5 % वोटों के साथ कैंपस में जो अपनी पैठ बनायी है, अपने पर्याप्त संसाधनों के बल पर उसे गहराई देने का प्रयास जरूर करेगी । एनएसयूआई भी यूडीए जैसे मंच की आड़ में फलने-फूलने के अवसर तालाश सकती है ।
बहरहाल विश्वविद्यालय के नवनिर्वाचित छात्रसंघ पदाधिकारियों को शुभकामनाएँ, निस्संदेह उनपर भारी जिम्मेदारी है । उम्मीद है कि वे अपनी जिम्मेदारी को निभाने का पूरा प्रयास करेंगे । यूडीए पर जताया गया विश्वास एक नयी परंपरा की शुरूआत है । यूडीए का गुरूत्तर दायित्व है कि वह इस विश्वास पर खरा उतरे और इस परंपरा के विकसित होने में जिन लोगों ने अपना योग दिया है, उन्हें अफसोस करने का मौका न दे । हालाँकि ढाई महीने की इस अवधि में ऐसा उल्लेखनीय कुछ भी नहीं हुआ है, जिस पर संतोष व्यक्त किया जा सके ।
चुनाव परिणाम की खबरों से सम्बंधित कुछ लिंक -
- यूओएच हेराल्ड
- दी हिन्दू डॉट कॉम
- Aggregate.Commuoh.In (इस चुनाव और पिछले चुनावों से सम्बंधित कई सूचनाओं के लिंक यहाँ उपलब्ध हैं।)
[ सभी तस्वीरें साभार - UOH
DISPATCH : A LAB PUBLICATION OF DEPARTMENT OF
COMMUNICATION (For Internal Circulation Only) : UNIVERSITY OF HYDERABAD : OCTOBER
2014 : VOL-8 : ISSUE-9 ]
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